तेवीसवां रोजा : अल्लाह अता करता है पाकीजगी की तौफीक

रमजान का आखिरी अशरा चूंकि दोजख (नर्क) से निजात (मुक्ति) का है, इसलिए जेहन में यह सवाल उठना बहुत कुदरती बात है कि जहन्नुम (नर्क) की आग से बचने के लिए क्या कदम उठाए जाएं?

बावीसवां रोजा : अल्लाह तआला को पुकारने का तरीक़ा

हर मज़हब की इबादत का अपना ढंग होता है। इसके अलावा हर मज़हब में ऐसी कोई न कोई रात या कुछ ख़ास बातें इबादत के लिए मख़्सूस (विशिष्ट) होती हैं जिनकी अपनी अहमियत होती है।

बीसवां रोजा : बने अल्लाह के फर्मांबरदार

बीसवां रोजा दरअसल मगफिरत (मोक्ष) के अशरे (कालखंड) की आख़िरी कड़ी है। जैसा कि पहले भी बयान किया जा चुका है कि ग्यारहवीं रोज़े से शुरू होकर बीसवीं रोज़े तक की बीच के दस दिनों की रोजादार की परहेज़गारी, इबादत, तिलावते-कुरआन (कुरआन का पठन-

हदीस शरीफ

हजरत अब्दुल्लाह बिन मसउद रज़ी अल्लाहु तआला अनहु से रिवायत है के, रसूल-ए-पाक (स०) ने फ़रमाया, हर क़र्ज़ सदका है, यानि क़र्ज़ देने का सवाब सदका देने के बराबर है। (तिरमिज़ी)

अठारहवां रोजा : नेक रोजादार, जन्नत के हकदार

कुरआने-पाक की सूरह ‘हूद’ की तेईसवीं आयत (आयत नंबर-23) में जाहिर कर दिया गया है- ‘जो लोग ईमान लाए और नेक अमल किए और अपने परवरदिगार के आगे आजिजी (याचना) की, यही साहिबे-जन्नत (स्वर्ग के अधिकारी यानी पात्र) हैं। हमेशा इसमें (जन्नत में) रहेंगे।

सत्रहवां रोजा : आखिरत की फिक्र और अल्लाह तआला का जिक्र

मगफिरत (मोक्ष) के अशरे के आईने में देखें तो सत्रहवां रोजा आखिरत की फ़िक्र है, अल्लाह तआला का जिक्र है। इस बात को इस तरह समझना होगा-किसी भी शख्स के सामने मोटे तौर पर दो ही तरह से फिक्र होती है, दुनियावी (सांसारिक) और दीनी (धार्मिक)।

सोलहवां रोजा ….. और

इबादत इमारत की तरह है, ईमान बुनियाद की मानिन्द है। इस्लाम,दरअसल अल्लाह तआला पर ईमान लाना और पैगंबर के अहकामे शरीअत को दिल से तस्लीम (स्वीकार) करना दरअसल मगफिरत (मोक्ष) का सिलसिला मानता है।

पंद्रहवां रोजा : वादे की पाबंदी है ‘रोजा’

अल्लाह तआला की अज़मत व रिफअत (गरिमा) का़ कुरआने-पाक में लगातार ज़िक्र है जिसमें अल्लाह तआला को मेहरबानी करने वाला और बंदों के गुनाहों को माफ़ करके उन्हें बख़्श देने वाला और मगफि़रत से नवाज़ने वाला बताया गया है।

तेरहवां रोजा …..और उसकी फजीलत

मगफ़िरत (मोक्ष) की बात दरअसल रूहानियत (आध्यात्मिकता) से, रूहानियत इबादत से, इबादत अल्लाह (ईश्वर) से ताल्लुक रखती हैं। रोजा, रूहानियत का रास्ता है। रोजा अल्लाह से वास्ता है। तक़्वा (संयम) रोजे की शर्त है। तरीके से रखा गया रोजा, रोजादार

क़ुरआन हकीम तमाम अक़्वाम आलम के लिए सरेचश्मा हिदायत, मौलाना हबीब अबदुर्रहमान इलहा मद का ख़िताब

हैदराबाद 15 जुलाई: ( रास्त ) क़ुरआन हकीम फ़क़त मुस्लमानों के लिए नहीं तमाम अक़्वाम आलम के लिए सरेचश्मा हिदायत है और पैदाइश से लेकर मौत तक के तमाम मसाइल का हल इस आसमानी सहीफ़ा में मौजूद है।

माह रमज़ान उल-मुबारक इबादतों का महीना

हैदराबाद 15 जुलाई : (सियासत न्यूज़) मर्कज़ी वज़ीर अक़लियती उमूर के रहमान ख़ान ने माह रमज़ान के दौरान मुल्क की सलामती, भाई चारगी, मुस्लमानों की फ़लाह-ओ-बहबूद और तरक़्क़ी के लिए मुस्लमानों से दुआ की अपील की।

तक़वा इख्तेयार करो

हज़रत जाबिर रज़ी०से रिवायत है कि रसूल करीम स०अ०व० के सामने एक ऐसे शख़्स का ज़िक्र किया गया, जो कसरत के साथ इबादत-ओ-ताअत में मशग़ूल रहता है और इसमें बहुत ज़्यादा सुई‍ ओ‍ एहतेमाम करता है

क़ियामत बरहक़ है

वो होकर रहने वाली, क्या है वो होकर रहने वाली और ऐ मुख़ातब तुम क्या समझो वो होकर रहने वाली क्या है?। झुटलाया समूद और आद ने टकराकर पाश पाश करने वाली को। (surah hakka: १ता४)

दुनिया मोमिन के लिए क़ैदख़ाना है

हज़रत अब्दुलाह बिन उमर रज़ी० से रिवायत है कि रसूल करीम स०अ०व०ने फ़रमाया ये दुनिया मोमिन के लिए क़ैदख़ाना और क़हत है। जब वो मोमिन दुनिया से रुख़सत होता है तो (गोया) क़ैदख़ाना और क़हत से नजात पाता है। (सरह अल सुन्नत)