सिदक़ दिल से तौबा करो
ऐ ईमान वालो!
ऐ ईमान वालो!
एक तालिबे हक इस्लाहे नफ्स के लिए एक बुजुर्ग की खिदमत में हाजिर हुए और शेख के तजवीज कर्दा जिक्र और शगल को एहतेमाम से करने लगे लेकिन जो खादिमा शेख के घर से उनके लिए खाना लाया करती थी उस पर बार-बार निगाह डालने से उनके दिल में उस खादिमा क
हज़रत जाबिर रज़ी० से रिवायत है कि रसूल करीम स०अ०व० ने फ़रमाया अपनी उम्मत के बारे में जिन दो चीज़ों से में बहुत ज़्यादा डरता हूँ, इन में से एक तो ख़ाहिश नफ़्स है, दूसरे (ताख़ीर अमल और नेकियों से ग़फ़लत के ज़रीया) दराज़ ए उम्र की आरज़ू
उनके ऊपर लिबास होगा बारीक सब्ज़ रेशम का (बना हुआ) और इत्लस ( कीमती कपड़े) का और उन्हें चांदी के कंगन पहनाए जाएंगे और पिलाएगा उन्हें इनका परवरदिगार निहायत पाकीज़ा शराब। (उन्हें कहा जाएगा) ये तुम्हारा सिला है और (मुबारक हो) तुम्हारी कोशि
आप ने फ़रमाया ए मेरी क़ौम! मैं तुम्हें सरिया तौर पर डराने वाला हूँ कि इबादत करो अल्लाह तआला की और इस से डरो और मेरी पैरवी करो। (सूरा नूह।२,३)
हज़रत अबूहुरैरा रज़ी०से हज़रत सईद मक़बरी (ताबई) रज़ी० रिवायत करते हैं कि (एक दिन) वो (हज़रत अबूहुरैरा रज़ी०) कुछ लोगों के पास से गुज़रे (जो एक जगह खाने के दस्तरख़्वान पर जमा थे) और उनके सामने भुनी हुई बकरी रखी थी।
और इसी तरह अल्लाह ने ईमानवालों के लिए फ़िरऔन की बीवी की मिसाल पेश फ़रमाई, जब कि इसने दुआ मांगी ऐ मेरे रब!
हज़रत मुहाजिर बिन हबीब रज़ी० से रिवायत है कि रसूल करीम स०अ०व० ने फ़रमाया अल्लाह तआला फ़रमाता है कि मैं अक़लमंद-ओ-दानिश्वर की हर बात को कुबूल नहीं करता (यानी मेरा दस्तूर ये नहीं है कि आलिम-ओ-फ़ाज़िल और अक्लमंद-ओ-दाना शख़्स जो बात भी कहे उस
मालिगांव 9 मई : मालिगांव में दो मंज़िला मस्जिद बनाई जा रही थी कि अचानक कुछ हिस्सा गिर गया जिससे एक शख़्स हलाक होगया।
हज़रत अनस रज़ी० से रिवायत है कि रसूल करीम स०अ०व० ने फ़रमाया इंसान (ख़ुद तो) बूढ़ा हो जाता है, मगर इस में दो चीज़ें जवान और क़वी हो जाती हैं, एक तो माल (जमा करने) की हिर्स (और उस को ख़र्च ना करने की आदत) और दूसरे दराज़ी उम्र की आरज़ू। (बुख़ारी-ओ-मुस्
और नहीं मिलता इंसान को मगर वही कुछ जिस की वो कोशिश करता है। (सूरतुल नज्म: ३९)
और जो कुछ उन्होंने किया है उन के नामा आमाल में दर्ज है। और हर छोटी और बड़ी बात (इस में) लिखी हुई है। बेशक परहेज़गार बाग़ों में और नहरों में होंगे। बड़ी पसंदीदा जगह में अज़ीम क़ुदरत वाले बादशाह के पास (बैठे) होंगे। (सूरा अल क़मर। २५ता५५)
हज़रत अबू बक्र रज़ि० कहते हैं कि रसूल करीम स०अ०व० ने फ़रमाया इस में कोई शुबा नहीं कि अनक़रीब फ़ितनों का ज़हूर होगा। याद रखो!
(हकीम मोहम्मद इरफान अल हुसैनी) हजरत अबू जर गफ्फारी (रजि०) बयान करते हैं कि मुझे मेरे महबूब नबी करीम (सल०) ने सात बातों का खास तौर से हुक्म फरमाया (जिस पर हम दिल से आमिल और कारबंद हो)
नून : क़सम है क़लम की और जो कुछ वो लिखते हैं। (सूरतुल-क़लम: १) क़लम से बाअज़ हज़रात ने वो क़लम मुराद लिया है, जिस ने अमरे इलाही से तक़ादीर आलम को लौह ए महफ़ूज़ में तहरीर किया, जिस की माहीयत से अल्लाह तआला ही आगाह है। अक्सर उल्मा की राय ये है कि क़लम से
हज़रत अबू दर्दा रज़ी० से रिवायत है कि रसूल करीम स०अ०व० ने फ़रमाया इस में कोई शुबा नहीं कि रिज़्क बंदे की, इस तरह तलाश करता है, जिस तरह इंसान को उस की मौत ढूंढती है। इस रिवायत को अबू नईम ने किताब हुलिया में नक़ल किया है।
पस जिस को दे दिया गया इसका नामा अमल दाएं हाथ में तो वो (फ़र्त मुसर्रत से) कहेगा लो पढ़ो मेरा नामे अमल। मुझे यक़ीन था कि में अपने हिसाब को पहुँचूगा। पांचवें ये (ख़ुशनसीब) पसंदीदा ज़िंदगी बसर करेंगे, आलीशान जन्नत में, जिस के ख़ोशे झुके होंग
हज़रत अबूहुरैरा रज़ी० से रिवायत है कि रसूल करीम स०अ०व० ने फ़रमाया किसी फ़ाजिर (यानी काफ़िर या फ़ासिक़) को दुनियावी नेअमतों (यानी जाह-ओ-हशमत और दौलत) से मालामाल देख कर इस पर रश्क न करो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि मरने के बाद (क़ब्र में या हश्र म
(इतनी फ़हमाइश के बावजूद) ना इस ने तसदीक़ की और ना नमाज़ पढ़ी, बल्कि इस ने (हक़ को) झुटलाया और इस से मुँह फेर लिया। फिर गया घर की तरफ़ नख़रे करता हुआ। (सूरतुल क़ियामा ३१ता३३)
हज़रत अनस रज़ी० से रिवायत है कि नबी करीम स०अ०व० ने ये दुआ फ़रमाई कि ऐ अल्लाह!