Ghazal
तुम से बेरंगी-ए-हस्ती का गिला करना था
तुम से बेरंगी-ए-हस्ती का गिला करना था
दिल पे अंबार है ख़ूँगश्ता तमन्नाओं का
आज टूटे हुए तारों का ख़याल आया है
एक मेला है परेशान सी उम्मीदों का
चन्द पज़मुर्दा बहारों का ख़याल आया है
पाँव थक-थक के रह जाते हैं मायूसी में
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में
और जाम टूटेंगे इस शराब-ख़ाने में
मौसमों के आने में मौसमों के जाने में
हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं
उम्र बीत जाती है दिल को दिल बनाने में