आज़मीन-ए-हज के लिए सहुलतें बेहतर बनाने हुकूमत-ए-हिंद का तैक़ून

हुकूमत ने आज तैक़ून दिया कि आज़मीन-ए-हज की सहूलतों को नुमायां तौर पर बेहतर बनाया जाएगा और सऊदी अरब से दरख़ास्त की जाएगी कि सालाना आज़मीन-ए-हज्ज के हिन्दुस्तानी कोटा में 20% तख़फ़ीफ़ से दसतबरदारी इख़तियार करली जाये। ये तस्लीम करते हुए कि

असल राज़िक कौन?

हज़रत अनस रज़ी अल्लाहु तआला अनहु फ़रमाते हैंके रसूल क्रीम (स०) के ज़माना में दो भाई थे, जिन में से एक तो नबी (स०) की ख़िदमत में रहा करता था (क्युंकि इस के अहल-ओ-अयाल नहीं थे और वो हुसूल मआश की ज़िम्मेदारीयों से बेफ़िकर होकर ताअत-ओ-इबादत और दी

सब्र का दामन थाम लो

नहीं आई कोई मुसीबत ज़मीन पर और ना तुम्हारी जानों पर मगर वो लिखी हुई है किताब में इस से पहले कि हम उन को पैदा करें, बेशक ये बात अल्लाह के लिए बिलकुल आसान है, (हम ने तुम्हें ये इस लिए बता दिया है) कि तुम ग़मज़दा ना हो उस चीज़ पर जो तुम्हें ना मिल

ज़िंदगी का जायज़ा लो

हज़रत इबन अब्बास रज़ी अल्लाहु तआला अनहु से रिवायत हैके(स०) ने फ़रमाया एलान करने वाला (फ़रिश्ता) क़ियामत के दिन (अल्लाह ताआला के हुक्म से) ये एलान करेगा कि साठ साल की उम्र वाले लोग कहाँ हैं?

इंसाफ़ को इख़तियार करो

अल्लाह ताआला तुम्हें मना नहीं करता कि जिन लोगों ने तुम से दीन के मुआमले में जंग नहीं की और ना उन्होंने तुम्हें तुम्हारे घरों से निकाला कि तुम उनके साथ एहसान करो और उनके साथ इंसाफ़ का बरताव‌ करो, बेशक अल्लाह ताआला इंसाफ़ करने वालों को

ग़ुस्ले काअबा की तक़रीब 30 मई को होगी

अब जबकि रमज़ान की आमद आमद है ,इस्तिक़बाल रमज़ान के सिलसिले में काबतुल्लाह शरीफ़ को ग़ुस्ल देने की तक़रीब जुमा 30 मई बमुताबिक़ यकम शाबान को होगी। हर साल रमज़ान से पहले ख़ाना काअबा को ग़ुस्ल दिया जाता है।

श्री राम से मोहम्मद सिराजुर्रहमान बने दाई के हाथों 2000 अफ़राद का क़ुबूल ए इस्लाम

श्री राम ने कभी ये सोचा तक नहीं था कि वो एक दिन दामन इस्लाम में पनाह लेकर दावत-ए-दीन के मुक़द्दस काम में मसरूफ़ हूजाएंगे लेकिन अल्लाह तआला अपने किसी बंदा पर रहम करते हैं इस पर मेहरबान होते हैं तो उसे ईमान की दौलत से नवाज़ते हैं। अल्लाह

मुंतख़ब आज़मीने हज के लिए आज रक़म जमा करने की आख़िरी तारीख

हज सीज़न 2014 के लिए मुंतख़ब 2435 आज़मीने हज ने पहली क़िस्त की रक़म अदा करदी है जबकि ख़ुसूसी कोटा के तहत 12 ख़्वातीन की दरख़्वास्तें वसूल हुईं जो अपने महरम के साथ हज की सआदत हासिल करने की ख़ाहां हैं।

दुनियादारी से बचो!

हज़रत अनस रज़ी अल्लाहु तआला अनहु से रिवायत हैके (एक दिन मजलिस नबवी(स०)में मौजूद सहाबा किराम से) रसूल सल्लललाहु अलैहि व सल्लम ने पूछा क्या कोई शख़्स पानी पर इस तरह चल सकता है कि इस के पाव‌ तर ना हूँ?। सहाबा किराम ने अर्ज़ क्या या रसूल अल

दुनियादारी से बच्चो

हज़रत अनस रज़ी अल्लाहु तआला अनहु से रिवायत हैके (एक दिन मजलिस नबवी(स०)में मौजूद सहाबा किराम से) रसूल सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा क्या कोई शख़्स पानी पर इस तरह चल सकता है कि इस के पाव‌ तर ना हूँ?। सहाबा किराम ने अर्ज़ क्या या रसूल अल

रब तो सब का है लेकिन

ना सुनेंगे वहां कोई बेहूदा बात और ना झूट ये बदला है आप के रब की तरफ़ से बड़ा काफ़ी इनाम (सूरतउल नबा।३५,३६)

जन्नत के हक़दार कौन?

हज़रत अब्दुल्लाह बिन उम्र रज़ी अल्लाहु तआला अनहु बयान फ़रमाते हैं कि हम लोग मस्जिद (नबवी) में बैठे हुए थे और फ़िक़रा-ए-मुहाजिरीन का हलक़ा जमा हुआ था कि अचानक नबी करीम सल्लललाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ़ लाए और फ़िक़रा की तरफ़ चहरा-ए-मुबारक करके

दीनी ही दीन इस्लाम है

बेशक दीन अल्लाह ताआला के नज़दीक सिर्फ़ इस्लाम ही है और नहीं झगड़ा किया जिन को दी गई थी किताब मगर बाद इस के कि आगया था उनके पास सही इलम (और ये झगड़ा) बाहमी हसद की वजह से था और जो इनकार करता है अल्लाह की आयतों का तो बेशक अल्लाह ताआला बहुत जल्

मौत इंसान के करीब है

हज़रत रज़ी अल्लाहु तआला अनहु से रिवायत हैके नबी करीम सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ये तो इबन-ए-आदम (इंसान) है और ये उसकी मौत है। ये फ़रमाकर आप सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने अपना हाथ पीछे की तरफ़ रखा (यानी पहले तो एक जगह इशारा करके बताया क

इस्लाम में इलाक़ा, रंग, नस्ल और बिरादरी की तफ़रीक़ नहीं

मुफ़क्किर इस्लाम फ़ज़ीलतुल शेख़ हज़रत सैयद सलमान हुसैनी ने कहा कि रबबे कायनात ने नबी आखिरुज़्ज़मां हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाह अलैहि सल्लम को रहमतल्लिल आलमीन बनाकर मबऊस फ़रमाया। सहाबा किराम रिज़वान उल्लाह अलैहि अजमईन ने इस्लाम के

कीमती उम्र ज़ाए मत करो

हज़रत मुहम्मद बिन अब्बू अमीरा रज़ी अल्लाहु तआला अनहु जो सल्लललाहु अलैहि वसल्लम के सहाबा में से हैं, फ़रमाते हैंके अगर कोई बंदा अपनी पैदाइश के वक़्त से बुढ़ापे में मरने तक (अपनी पूरी और तवील ज़िंदगी के दौरान) सिर्फ़ ख़ुदा की इताअत-ओ-इबा

मुबल्लि़ग कैसा होना चाहिए?

और तुम ना बुरा भला कहो उन्हें जिन की ये प्रसतिश करते हैं अल्लाह के सिवा (एसा ना हो) कि वो भी बुरा भला कहने लगीं अल्लाह को ज़्यादती करते हुए जहालत से। यूंही आरास्ता कर दिया है हम ने हर उम्मत के लिए इन का अमल फिर अपने रब की तरफ़ ही लैट कर आना

क़ुरब क़ियामत

हज़रत शोबा(RH) हज़रत क़तादा(RH) से और वो हज़रत अनस रज़ी अल्लाहु तआला अनहु से रिवायत करते हैं कि रसूल (सल्लललाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया में और क़ियामत, इन दो उंगलीयों (यानी शहादत की उंगली और बीच की उंगली) की मानिंद भेजे गए हैं। (मुत्तफ़िक़ अलैह)

क़ियामत का मंज़र

कितने दिल उस रोज़ (ख़ौफ़ से) काँप रहे होंगे, उनकी आँखें (डर से) झक्की होंगी। काफ़िर कहते हैं क्या हम पलटाए जाऐंगे उल्टे पाव‌ (सूरत अलनाज़ात।८ता१०)