झूट की बुराई

(मौलाना रिजवान अहमद कादरी) हजरत सफवान बिन सलीम (रजि0) से रिवायत है कि नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) से किसी ने अर्ज किया – ‘क्या मोमिन बुजदिल हो सकता है?’ आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने फरमाया – ‘हां।’ फिर अर्ज किया – ‘क्या मोमिन बख

करतूतों का बदला

(मौलाना मुफ्ती शफी )अल्लाह तआला कुरआन पाक में इरशाद फरमाते हैं कि ‘तुम्हे जो कुछ मुसीबतें पहुंचती है वह तुम्हारे अपने हाथों के करतूत का बदला है और भी तो बहुत सी बातों से वह दरगुजर फरमा लेता है। (सूरा शूरा-30)

अल्लाह तआला से पाकदामनी और सेहत तलब करो

(मौलाना जुल्फिकार अहमद नक्शबंदी) नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फरमाया है कि जो शख्स निकाह पर कुदरत न रखता हो उसे रोजा रखना चाहिए। क्योंकि रोजा उसके लिए वजा है। वजा का मतलब शहवत को तोड़ने वाला या खत्म करने वाला है। रोजा

रबीउल अव्वल के महीने का पैगाम और इसके तकाजे

(मुफ्ती सलमान अकबर) रबीउल अव्वल का महीना एक बार फिर अपनी तमामतर बहारों के साथ आया है। यह वह पुर बहार मुबारक महीना है जिसमें इस दुनिया की सबसे मुकद्दस हस्ती, सबसे बाबरकत शख्सियत, सबसे सच्चे, सबसे पाक दामन, दुनिया की तमामतर खूबियों और

नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) की हयात मीनारे नूर व लायके तकलीद नमूना

(मोहम्मद सऊद आलम कासमी) अल्लाह तआला ने इंसानों की हिदायत और रहनुमाई के लिए हर जमाने और हर जुगराफियाई खित्ते में अपनी तरफ से किसी न किसी मंुतखब रसूल और पैगम्बर को भेजा। हजरत आदम (अलैहिस्सलाम) से लेकर हजरत मोहम्मद (सल्लल्लाहू अलैहि व

गीबत के मायने और उसकी तफसील

हजरत अबू हुरैरा (रजि0) से रिवायत है कि (एक दिन) नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) ने (सहाबा से) फरमाया -‘‘क्या तुम जानते हो कि गीबत किसको कहते हैं?

आदाबे जियाफत

(मौलाना सैयद अहमद दमीज नदवी) अल्लाह तआला का इरशाद है-‘‘ क्या इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) के मोअज्जिज मेहमानों की हिकायत आप तक पहुंची जबकि वह मेहमान उनके पास आए फिर उनको सलाम किया। इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) ने भी (जबाव में) सलाम किया (और कहने

जन्नत का बाज़ार

(कारी नजीर अहमद कादरी) हजरत सईद बिन मसीब (रह0) का बयान है कि मैंने हजरत अबू हुरैरा (रजि0) से मुलाकात की। उन्होंने कहा कि मैं अल्लाह तआला से सवाल करता हूं कि मुझे और तुझे जन्नत के बाजार में इकट्ठा कर देवे। हजरत सईद ने पूछा क्या जन्नत में ब

अमल की कुबूलियत की शर्तें

(मौलाना मोहम्मद अजमत उल्लाह मोहम्मदी ) दुनिया दारूल अमल है तो आखिरत दारूल जजा है। दुनिया को आखिरत की खेती भी कहा जाता है जैसी खेती दुनिया में की जाएगी वैसी फसल आखिरत में काटी जाएगी। यह दुनिया एक इम्तेहान गाह है जिसका नतीजा आखिरत मे

इत्तबा से मोहब्बत में इज़ाफा होता है

अम्बिया‍ ए‍ किराम अच्छे अखलाक की तालीम व तलकीन के लिए आते हैं, दिल व ज़हन और फिक्र व नजर तब्दील करने के लिए आते हैं, हुलिया तब्दील करने नहीं आते। यह मुम्किन भी नहीं कि दुनिया के तमाम इंसानों के लिए एक लिबास और एक ही हुलिया कयामत तक के ल

सब्र आधा ईमान है

(डाक्टर अब्दुल करीम)सब्र उन मामलात में से है जो इस्लाम में फर्ज हैं। सब्र आधा ईमान है। कुरआने करीम ने अस्सी मकामात पर इसका ज़िक्र किया है। कहीं इसका हुक्म दिया गया है-‘‘ सब्र और नमाज से मदद लो।’’ (अल बकरा-2.45) और कहीं इसकी खिलाफवर्जी से

एक बुरी आदत से बचिए !

(मौलाना सैयद अशहद रशीदी) हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर (रजि0) से मरवी है कि नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फरमाया- इंसान बराबर लोगों से मांगता रहता है, यहां तक कि वह कयामत के दिन मैदाने हश्र में इस तरह आएगा कि उसके चेहरे पर गोश्त

मोहर्रम के महीने के दो अजीम सानेहा

(मौलाना मोहम्मद जकीरउद्दीन)मोहर्रम का महीना इस्लामी तकवीम का पहला महीना है जिसकी बुनियाद नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) की मदीना हिजरत के वाक्ये पर रखी गई है। इससे पहले की तकवीमें किसी अहम शख्सियत के यौमे विलादत या किसी वाक्

लड़कियां अल्लाह की बड़ी नेमत

(मौलाना मोहम्मद हारून रशादी)यह मुसलमान औरतों के लिए किसी तरह की मुनासिब नहीं है कि हमल के करार पाते ही सिर्फ लड़के की ऐसी तमन्ना और दुआ करना कि लड़की पैदा हो जाए तो उसको बुरा समझें, चेहरा अफसुर्दा हो जाए, दिल गमगीन हो जाए बल्कि लड़कि

एक आयत की मुख्तसर तफसीर

(मौलाना मोहम्मद उवैस नगरानी नदवी ) कुरआने मजीद में अल्लाह तआला का इरशाद है-‘‘ (तर्जुमा) और अगर (जिस पर फर्ज है) उसका हाथ तंग है तो उसको मोहलत दो, जब तक उसका हाथ कुशादा हो और अगर माफ कर दो तो तुम्हारे लिए बेहतर है।’’ (सूरा बकरा)

नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) के बाबरकत इब्तिदाई दिन

(डाक्टर मोहम्मद उल्लाह)कुदरती वसायल के फुकदान के बावजूद मक्का इस तिकोन के दूसरे हिस्सों यानी मदीना और तायफ में सबसे ज्यादा तरक्कीयाफ्ता था। उनमें से सिर्फ मक्का में एक शहरी रियासत कायम थी जिसका इंतजाम पुश्त दर पुश्त से रायज कबाइ

खुतबा-ए-नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)- हज्जतुल विदा

(मौलाना मोहम्मद जैनुल आबदीन रशादी मजाहरी)अल्लाह तआला ने इंसानियत की हिदायत के लिए नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को दुनिया में भेजा। आप के कौल व फेअल को हमारे लिए नमूना करार दिया। एक मुसलमान आप के बताए हुए तरीके पर चल कर ही हिदा

ईद उल अजहा की नमाज के एहकाम और मसायल

मौलाना मुफ्ती मोहम्मद रफअत कासमी : छोटे मौजो में जुमा और ईदैन की नमाज पढ़नी मकरूह तहरीमी है अलावा इसके बड़े मौजो में जहा जुमा व ईदैन की नमाज जायज है वहां तनहा नमाज पढ़ना भी जायज नहीं है क्योंकि जुमा व ईदैन की नमाज के लिए शरायत हैं। त

कुर्बानी एक अजीम यादगार है

(निहाल हफीज)कुर्बानी हजरत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) और हजरत इस्माईल (अलैहिस्सलाम) की यादगार है। वाक्या इस तरह है कि हजरत इस्माईल (अलैहिस्सलाम) हद बलूगत के करीब पहुंच गए तो अल्लाह तआला ने हजरत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) से आप की कुर्बानी त

आग है, औलादे इब्राहीम है नमरूद है!

(मोहम्मद उस्मान पेंटर)आज दुनिया की दो-तिहाई आबादी बल्कि कुछ ज्यादा हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को अपना पेशवा मानती है और हजरत मूसा, हजरत ईसा और हजरत मोहम्मद (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) की हाजिरी ) तीनों उन्हीं की औलाद है। दुनिया की ती