एकतरफा वोट नहीं देते हैं मुस्लिम वोटर्स

मुल्क की आबादी में 15 फीसदी के हिस्सेदार मुस्लिम फिर्के के लिए आम तौर पर यह माना जाता है कि वो किसी एक पार्टी या खुसूसी कम्युनिटी के लिये वक्फ रहते हैं। वैसे भी हिंदुस्तानी वोटर्स के लिए कहा जाता है कि वो मुंसिफाना वोटींग नहीं करते

सोनिया कुन्बे को मोदी की धमकी

विश्व हिन्दू परिषद के पागल हो चुके प्रवीण तोगडि़या ने मुसलमानों को जो धमकियां दी थी, मुल्क का वजीर-ए-आजम बनने के लिए उतावले तोगड़िया के पुराने साथी नरेन्द्र मोदी उनसे भी कई कदम आगे बढ़ गए और 23 अप्रैल को गुजरात के जामनगर में अपनी पार्

मुसलमान किसी से नहीं डरते

बी जे पी लाख कोशिश करले, नरेंद्र मोदी गुजरात ता दिल्ली सर के बल सफ़र पर निकल पड़े या तेज़ गर्मी की तमाज़त में अहमदाबाद से आर एस एस के हेडक्वार्टर नागपुर तक पैदल चलते हुए पहुंचे इस के बावजूद मर्कज़ में बी जे पी हुकूमत बना सकती है और ना ही मो

इस्लाम चाहता है कि मुसलमान दौलत हासिल करे

माल व दौलत दुनियावी जिंदगी की ज़ीनत है मआश और मआशी वसायल माद्दी एतबार से इंसानी समाज की बुनियाद है। इसी के जरिए इंसान अपनी उस खुराक व पोशाक, घर व मकान और जरूरियाते जिंदगी को हासिल कर सकता है जिस के लिए वह अपनी जिंदगी में रात व दिन लगा

बदशगुनी और इस्लामी नुक्ता-ए-नजर

इस्लाम हकायक, सदाकतों और सच्चाइयों पर मुश्तमिल दीन है, तौहुमात व खुराफात, ख्याली व तसव्वुराती दुनिया में इसका कोई ताल्लुक नहीं। बदशगुनी व बदगुमानी और मुख्तलिफ चीजों की नहूसत के तसव्वुर व एतकाद की यह बिल्कुल नफी करता है।

नजर आने लगे गरीबों के मसीहा

इलेक्शन का वक्त आते ही एक एक गरीब के वोट कीमती हो जाते है सबको गरीबों की फिक्र होने लगती है | इलेक्शन के बाद गरीब और गरीबी बहस व फाइव स्टार होटल में मुनाकिद सेमिनार का मौजू बनकर रह जाता है |

कुरआन और कुवत

गैर मुस्लिमों खासकर अमेरीका व यूरोप की इस्लाम दुश्मनी और मुसलमानों के खिलाफ साजिश और उन्हें कमजोर व बेबस करने की तारीख कोई नई बात नहीं। दस सौ पनचान्बे से लेकर बारह सौ नब्बे तक ईसाई मुल्क बैतुल मुकद्दस को बुनियाद बनाकर मिडिल ईस्ट

अल्लाह पर तवक्कुल

नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का इरशाद है कि जो शख्स अपने फाका और एहतियात को अल्लाह तआला के सामने पेश करता है, अल्लाह तआला बहुत जल्द उसके फुक्र को जल्दी की मौत से या जल्दी के गना से दूर फरमाते हैं। जल्दी की मौत के दो मतलब है। एक य

जब कैसर रोम को आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का ख़त मिला

हजरत इब्ने अब्बास (रजि0) फरमाते हैं- अबू सुफियान ने मुझ से बयान किया कि (रोम के शाह हिरक्ल ने मुझे अपने दरबार में तलब किया और मुझ से नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के बारे में पूछा)। हिरक्ल का पहला सवाल यह था कि उस शख्स का नसब कैसा है

नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से मोहब्बत-अहमियत और तकाजे

एक मुसलमान और मोमिन के लिए अपनी जात की मार्फत व मोहब्बत इतनी जरूरी नहीं जितनी कि मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से मोहब्बत ईमान का जुज है और हुब्बे नबवी के बगैर दावा-ए-ईमान भी मोतबर नहीं हो सकता।

सीरते नबवी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) आलमे इंसानियत के लिए शमा-ए-हिदायत

अल्लाह तआला ने नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सीरत, आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के कौल व फेअल, गुफ्तार व किरदार और आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की तमाम हरकात व सकनात को कयामत तक के नमूना और शमा-ए-हिदायत का मिनारा बनाकर पेश किय

नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) और हुकूके हैवानात

आज पूरी दुनिया हुकूके इंसानियत के ढिढोरे पीट रही है और इस मैदान में हर मजहब वाले अपने को सबसे ज्यादा हुकूके इंसानियत का अलमबरदार बता रहे हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि इस दुनिया में मोहसिने इंसानियत बल्कि मोहसिने कायनात (सल्लल्लाहु

हज़रत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) के अच्छे अख़लाक

मोहम्मद मुस्तफा (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) सबसे पहले नबी हैं आप आखिरी नबी हैं और आप उम्मुल किताब के हामिल हैं। आप(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) साहबे मेराज हैं आप शाफये महशर हैं। आप साहिबे अजवाज व औलाद हैं आप फातहे आलम हैं, आप मुत्तकी थ

हमारे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) का जज्बा-ए-रहम व करम

पैगम्बरे इस्लाम हजरत मोहम्मद मुस्तफा (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की पाक जिंदगी तमाम इंसानों के लिए नमूना है। आप इंसानियत के आला मकाम पर फायज थे। अगर आप की सीरत के मुताबिक इंसान जिंदगी बसर करे तो चारो तरफ अमन व अमान व भाईचारा और पाकी

रबी-उल-अव्वल और मुसलमानों का तर्जेअमल

अब से तकरीबन बीस सौ बरस पहले जबकि दुनिया जुल्मात के दरिया में गर्क थी और रूहानियत शैतानियत से मगलूब हो रही थी, अल्लाह तआला ने अपने आखिरी नबी और महबूब तरीन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम को दुनिया में भेजा ताकि आप नूरे हिदायत स

निकम्मों के लिए एक सबक़़

बेरोज़गारी और मायूसी से ख़ुदकुशी के बढ़ते हुए ग्राफ़ से तमाम परेशान हैं, लेकिन कुछ लोग हैं कि ऐसे माहौल में मायूसी को धत्ता बताते हुए ज़िंदगी को नयी मंजिलों से रोशनास करा रहे हैं और निकम्मे लोगों के लिए सबक़ बन कर उभरे हैं। बात उन लोग

हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम

हमारे नबी का नाम हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम है, जो पीर के दिन, सुबह सादिक के वक्त (12) बारह रबीउल अव्वल, बमुताबिक बीस (20) अप्रैल 571 ईसवी, मुल्क अरब के शहर मक्का शरीफ में पैदा हुए। आपके वालिद का नाम हजरत अब्दुल्लाह और वा

बूढ़ों के साथ नबी करीम (स०अ०व०) का करीमाना सुलूक

मुरझाया हुआ चेहरा, सफेद दाढ़ी, हाथ में लाठी, चाल में सुस्तरवी, लड़खड़ाती ज़ुबान यह समाज का वह कमजोर तबका है जिसे हम बूढ़ों के नाम से जानते हैं। इंसानी जिंदगी कई मरहलों से गुजरते हुए बुढ़ापे को पहुंचती है। बुढ़ापा गोया इख्तितामे जिं

मुजफ्फरनगर : “अपनी सरजमीं छोडकर भला कौन खुश रहता है!”

मुजफ्फरनगर में फिर्कावाराना दंगे के दौरान अपने चार रिश्तेदार को अपनी आंखों के सामने कत्ल होते देखने वाले शाकिर अली बेघर होकर फिलहाल कैंप में खानदान वालों के साथ रह रहे हैं। वह कहते हैं कि अपना गांव और घर छो़डकर कौन खुश रहता है। अ