मुझ को भी पढ़ किताब हूँ मज़मून ख़ास हूँ

सब से पहले में क़ारईन को एक ज़िंदा ज़बान की हरकियाती ख़ुसूसीयात के बारे में चंद अहम असरी मालूमात पहुंचाना चाहूंगा ताकि उर्दू के असातिज़ा इस पर ग़ौर करें । ये ज़बान ज़ाहिर है अंग्रेज़ी के सिवा और कोई दूसरी हो नहीं सकती। अंग्रेज़ी ज़बान की क़दी

अपना अंदर बदलईए

अगर अंडे को बाहर से तोड़ा जाये तो…ज़िंदगी दम तोड़ देती है>

जबकि अंडा अंदर से टूटे तो..ज़िंदगी जन्म लेती है। मुसबत तबदीली हमेशा अंदर से पैदा होती है। अपना अंदर बदलईए।

नामालूम

इंसान और इंसानियत

एक इंसान दूसरे इंसान से मायूस हो सकता है लेकिन…इंसानियत से मायूस नहीं होना चाहिए।

इस लिए कि इंसान सिर्फ़ ज़मीन में सांस लेता है…और इंसानियत ज़मानों में ज़िंदा है।
{जोन ईलिया}

ग़ज़ल क्या है

ग़ज़ल के मुतअतिलक इज़हारे ख्याल करते हुये एक मौ़के पर मैंने कहा था ग़ज़ल इन्तेहाओं का एक सिलसिला है. यानि हयात व क़ायनात के वो मरकज़ी हक़ायक जो इन्सानी जि़न्दगी केा ज्यादाह से ज्यादह मुतास्सिर करते हैं.

जड़ें

सबके चेहरे उड़े हुए थे। घर में खाना तक न पका था। आज छठा दिन था। बच्चे स्कूल छोड़े, घर में बैठे, अपनी और सारे खानदान की जिंदगी मुहाल कर रहे थ।.

सब ग़ुलाम

जैसे ही उसकी आँख खुली, उसे शॉक-सा लगा। रेलवे प्लेट फार्म की बैंच पर लेटे-लेटे पता नहीं उसकी आंख कैसे लग गयी थी। हालाँकि उसका हाथ जेब पर ही था, लेकिन उसे पता नहीं चल पाया कि यह कैसे हुआ। उसे लगा कि उसकी जेब से पर्स ग़ायब हो गया है। इस हसा

दो बदन एक जान

गली के नुक्कड पर मुश्किल से आठ दस लोग ख़ड़े ह़ैं, लेकिन जैसे ही मर्फा (अरबी बाजा) बजना शुरू हुआ, शादी के घर में से कई लोग बाहर निकल आये। अब्दुल्लाह, अल हबीब, अबूद और अकबर मर्फे के बाजों पर हल्के से हाथ फिरा रहे है।

पिदरी ज़बान

जोश ने पाकिस्तान में एक बहुत बड़े वज़ीर को उर्दू में ख़त लिखा।

इस का जवाब वज़ीर ने अंग्रेज़ी में दिया।

ऐसी तो …

सहारनपुर में ईदन एक गाने वाली थी, बड़ी बाज़ौक़, सुख़न फ़हम और सलीक़ा शआर, शहर के अक्सर ज़ी इल्म और मोअज़्ज़िज़ीन उसके यहाँ चले जाया करते थे।

पूछरइं और कड़कड़ारइं सब जने

फिर से सूली पो चढारइं सब जने
दूसरी शादी करारइं सब जने

क्या करा, बस उनकी गली में गया
एक सुर में करकरारइं सब जने

ख़ाब में होती थी ऐसी कैफ़ियत
अब तो दिन में बड़बड़ारइं सब जने

जब से जद्दे को गया बेटा मेरा
घर को मेरे आरइं सब जने

हुए तुम दोस्त

इस तरह कर रहा है हक़-ए-दोस्ती अदा
उसका ख़ुलूस है मुझे हैरां किए हुए

मुद्दत से है अनाज का दुश्मन बना हुआ
मुदत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए

लैला के वास्ते

डर डर के शेख़ पढ़ते हैं लाहौल आजकल
शैतां के पास रहता है पिस्तौल आजकल

मोटर भगाए फिरता है लैला के वास्ते
मजनूं को है ज़रूरते पैट्रोल आजकल

यहीं पे खाओगे या ले के जाओगे

बोला दुकानदार, कि क्या चाहिए तुम्हें
जो भी कहोगे मेरी दुकान पर वो पाओगे

गाहक ने कहा कि कुत्ते के खाने का केक है
बोला यहीं पे खाओगे या ले के जाओगे?

लतीफे

इतनी गर्म !
* तीन दोस्त ( गप्पे बाज़) बैठे बातें कररहे थे।
एक दोस्त ने कहा, मैं इतनी गर्म चाय पीता हूँ कि अभी उबल रही होती है।
दूसरे ने कहा, मैं चाय चूल्हे से उतारकर फ़ौरन पी जाता हूँ।

बड़ा शायर

* कुछ नक़्क़ाद हज़रात उर्दू के एक शायर की मद्हसराई कर रहे थे, इन में से एक ने कहा, साहिब क्या बात है, बहुत बड़े शायर हैं, अब तो हुकूमत के ख़र्च से यूरोप भी हो आए हैं।

मुस्कुराइए….

इंसानियत का जज़्बा!
एक दोस्त ने दूसरे दोस्त से कहा : यार आज मैंने इंसानियत के जज़्बे के तहत एक गधे को ट्रेन की ज़द में आने से बचा लिया?
दोस्त ने ये सुन कर कहा : उस को इंसानियत का जज़्बा और बिरादराना जज़्बा भी कह सकते हैं।

मैं भी

ये अल्लाह के वो बंदे हैं….

एक बुजुर्ग एक आबादी से गु़जर रहे थे।

उन्होंने देखा पूरी आबादी में सिर्फ दो घर ऐसे हैं, जो चांदी की तरह चमक रहे हैं।

वो इसी तजस्सुस में दूसरे दिन भी उसी आबादी से गुज़रे और वही मंजर देखा।

उन्होंने लोगों से पूछा ये क्या माजरा है?

माफ़ कीजिए !

* एक पार्टी में एक साहिब ने अपने पास खड़े हुए आदमी से कहा : क्या ज़माना आगया है ? ज़रा सामने बैठे लड़के को तो देखो कैसी पोशाक पहनी है, बिलकुल लड़की मालूम होता है।

उस आदमी ने ज़रा नाराज़ होकर कहा :साहब वो मेरी लड़की है ।

मुस्कुराना मना है-2

जगह नहीं है

एक गाड़ी पर तीन आदमी सवार थे।

एक पुलिस ऑफ़िसर ने उन्हें देख कर गाड़ी रोकने के लिए कहा।
एक आदमी ने कहा : हम पहले ही से तीन हैं, तेरे लिए जगह नहीं है !

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